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Laghu Katha (1981) | Dr. MK Mazumdar
‘मनोरंजन’ डाॅ. एम.के. मजूमदार द्वारा लघुकथा संग्रह में से एक है। इनकी लघुकथाएं देश के विभिन्न पत्रिकाओं और पेपर में प्रकाशित हो चुकी है। कल और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। हो सकता है कुछ लघुकथाएं वर्तमान समय में अटपटी लगे पर अनेक लघुकथाएं आज के सदंर्भ में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं जितनी की उस वक्त. लघुकथा के परिवेश और काल को समझने के लिए प्रत्येक लघुकथा के लेखन के वर्ष को भी दर्शाया गया है जिससे पाठक उस काल को ध्यान में रखकर लघुकथा की गहराई को महसूस कर सकें। आप भी इन्हें पढ़े और अपने विचार कमेंट बाॅक्स में जरूर लिखें।
मनोरंजन
यासीन और टीना पार्क में बैठे थे। यासीन पार्क की घास पर ऊंगलियों से आड़ी-तिरछी रेखा खींच रहा था। उसने सन्नाटा तोड़ा।
‘‘फिर क्या सोचा तुमने ….।’’
‘‘मैं ना नहीं कह सकती …. । शादी की तारीख पक्की हो चुकी है …….. 14 को बारात आयेगी।’’
‘‘आखिर तुम समझती क्यों नहीं टीना ….. हम एक-दुसरे को चाहते हैं ….. जीने-मरने की कसमें खा चुके हैं …..।’’
‘‘….. जूते के पालिश की चमक की तरह उसे भूल जाओ …..। यह तो वक्त कटी थी …..। तुम्हारा भी मनोरंजन हो गया और मेरा भी ….।’’ कह कर टीना रूकी नहीं तेज कदमों से पार्क के बाहर हो गयी। यासीन अवाक उसे देखता रहा।…………. More
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